बच्चों का आकाश

Friday, September 7, 2012

इन्टरनेट पर ही मनेंगे अब सारे त्यौहार .










नहीं चाहिए खेल खिलौने 

और नहीं टाफी,  बैलून 
अब तो  मन लगाकर पढने 
दूर देश जाना  "रंगून"
गुडिया- गुड्डे की शादी के 
खेल से मत भरमाओ 
कंप्यूटर लाकर दो मुझको 
उसमे नेट लगवाओ 
ट्वीटर पर मैं ट्वीट  करूंगी 
फेशबुक  पर चैटिंग 
इन्टरनेट पर मैं  समझूँगी 
कैसी होती नैटिंग 
स्मार्टफ़ोन और टैबलेट पीसी 
सब अपने औजार्
इन्टरनेट पर ही मनेंगे 
अब सारे त्यौहार .

- कुशवंश 



Friday, August 31, 2012

देखो खूब भिगोते बादल














देखो कैसे रोते  बादल
पानी कैसे ढोते बादल 
अगर कही बच्चे मिल जाते 
देखो खूब भिगोते बादल 

गली मोहल्ले  बिखरे बादल 
बदली  बनके निखरे बादल  
हरियाली के चादर ताने 
देखो कैसे बिफरे बादल 

सांझ अँधेरा करते बादल 
रात में खूब बरसते बादल 
छप्पर  में बस टप .टप .टप .टप 
देखो खूब टपकते बादल 

फिसले बच्चे गिरे धडाम 
कपड़ों का बस काम तमाम 
घर आँगन में फैला दलदल 
ऐसा बदला लेते बादल 

हम बच्चों से कैसी रार 
भूलो बादल अब तकरार 
आओ हमको गोद उठाओ 
टिप-टिप वाला राग सुनाओ 

-कुश्वंश 




Monday, January 2, 2012

कैसे अब नव वर्ष मनाये


बड़े कड़ाके की सर्दी है
ऊपर से रिमझिम पानी,
नए वर्ष की सर्दी ने बस
याद दिलाई नानी,
सूरज दादा ठण्ड के मारे
छिप गए बादल पार ,
बिना टोप के जो भी निकला
उसको चढ़ा बुखार,
गरम चाय और गरम कचौड़ी
मम्मी आज बनाओ ,
खायेगे कम्बल में घुसकर
बिस्तर में दे जाओ,
दादा पहने बन्दर टोपी
दादी ओढ़े शाल,
फिर भी कट-कट दांत बज रहे
हाल हुआ बेहाल,
कैसे अब नव वर्ष मनाये
बाहर भीतर पानी,
पार्टी किसी और दिन होगी
बिगड़ी आज कहानी .

-कुश्वंश